शक्ति पीठो (shakti peeth in India)की महिमा का भी वर्णन बड़ा ही अध्भुत और मार्मिक भी हैं,ये सारे ही शक्तिपीठ माँ सती के प्रतीक के रूप इस धरा में विराजमान होकर हम सभी को को अपने आशीर्वाद से फलीभूत कर रहे हैं. माँ सती के ये 51 शक्तिपीठ देवी सती के स्वरुप के रूप में विराजमान हैं ,और भारत की धरा को अभिभूत कर रहे हैं.आइये इन शक्तिपीठो के दर्शन (shakti pith darshan)कर हम अपने जीवन और नेत्रों को पुण्य का भागी बनाते हैं
Contents
- 1 शक्ति पीठ की कथा- Shakti peeth ki Katha
- 2 देवी के मुख्य नौ शक्तिपीठ- 9 shakti peeth of durga
- 3 कालीघाट मंदिर कोलकाता
- 4 कोलापुर स्थित महालक्ष्मी का मंदिर
- 5 अम्बाजी का मंदिर गुजरात
- 6 उज्जैन स्थित हरसिद्धि माता का मंदिर
- 7 ज्वाला माता मंदिर काँगड़ा
- 8 नैना देवी मंदिर बिलासपुर
- 9 कामाख्या देवी मंदिर गुवाहाटी
- 10 तारापीठ मंदिर कोलकाता
- 11 श्री शैल शक्तिपीठ
शक्ति पीठ की कथा- Shakti peeth ki Katha
माँ सती के 51 शक्तिपीठो की स्थापना के इतिहास के बारे में जब हम जाने का प्रयास करे , तो यह कहानी हमारे सामने आती हैं. राजा दक्ष ने कनखल (हरिद्वार ) में एक यज्ञ का आयोजन कराया और उसमे सभी देवी देवताओ , सृष्टि करता ब्रह्मा , पालक श्री हरि पर देवो के देव महादेव अपने जमाता महादेव को नहीं बुलाया, देवी सती शंकर के मना करने के बाद भी यज्ञ में सम्मिलित होने चली गयी,वहाँ अपने पति का अपमान होता देख कर देवी सती यज्ञ कुंड की अग्नि में कूद कर अपने प्राणो की आहुति दे दी.
शंकर जी को जब इस दुर्घटना का पता चला तो उनका तीसरा नेत्र खुल गया , शिव के गणो ने दक्ष के यज्ञ में उथल पुथल मचा दी, शिव ने यज्ञ कुंड से देवी सती के पार्थिव शरीर को निकाला और दुःख से द्रवित होकर यहाँ वहाँ भटकने लगे शिव की यह करुण अवस्था देखकर भगवान् विष्णु ने चक्र से देवी सती के अंगो को काट दिया .और जहा जहा देवी सती के ये अंग गिरे, वहाँ देवी के शक्ति पीठो (shakti peeth) की स्थापना हुयी.
देवी के मुख्य नौ शक्तिपीठ- 9 shakti peeth of durga
पुराणों और ग्रंथो में देवी के 51 शक्तिपीठो का वर्णन मिलता हैं, ये सारे शक्तिपीठ भारत उपमहाद्वीप में स्थित हैं .पर देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठो (shakti peeth) का वर्णन उल्लिखित हैं.वही तंत्र चूड़ामणि में देवी के 52 शक्तिपीठो का वर्णन मिलता है.
देवी पुराण में जिन 51 शक्तिपीठो की चर्चा की गयी हैं उनमे भारत में 42 शक्तिपीठ ,पकिस्तान में 1 शक्तिपीठ ,बांग्लादेश में 4 शक्तिपीठ , तिब्बत में 1 शक्तिपीठ ,नेपाल में २ शक्तिपीठ स्थित हैं . उनमे से नौ शक्तिपीठ प्रमुख हैं.
9 shakti peeth of Durga
1-कालीघाट मंदिर कोलकाता में पाँव की चार अंगुलिया गिरी
2-कोलापुर महालक्ष्मी में त्रिनेत्र गिरा
3-अम्बाजी का मंदिर गुजरात जहा ह्रदय गिरा
4-हरसिद्धि माता मंदिर उज्जैन
5-ज्वाला माता मंदिर
6-नैना देवी मंदिर में नेत्र गिरे
7-कामाख्या देवी मंदिर में योनि गिरी
8-श्री शैल शक्तिपीठ माँ की ग्रीवा गिरी
9-तारापीठ मंदिर कोलकाता
कालीघाट मंदिर कोलकाता
सन 1809 में स्थापित माँ कालीका का मंदिर कालीघाट के नाम से भी प्रसिद्द हैं.देवी सती के दाए पैर की चार अगुलिया यहाँ पर गिरी थी. यहाँ माँ का स्वरुप श्याम रंग का हैं , उनकी जीभ सोने से निर्मित हैं उनके हाथ और दाँत भी सोने ही निर्मित हैं.यहाँ माँ का काली रूप अपने प्रचंड स्वरुप में हैं .कालीघाट का मंदिर तंत्र और अघोर क्रियाओं का केंद्र हैं.
मंदिर में दर्शन का समय सुबह 5 बजे से रात्रि 10 : 30 तक हैं .दिन में 2 से 5 बजे तक मंदिर बंद होता हैं इस दौरान माँ को भोग लगाया जाता हैं. मंदिर की मान्यताओं के अनुसार देवी को स्नान करते वक़्त प्रधा पुरोहित की आँख में कपडा बांध दिया जाता हैं.
कोलापुर स्थित महालक्ष्मी का मंदिर
कोलापुर स्थित महालक्ष्मी का मंदिर ऐसी मान्यता हैं यहाँ माँ का त्रिनेत्र गिरा था.यहाँ देवी का स्वरुप महिषासुर मर्दिनी के रूप में स्थित हैं, इस मंदिर की विशेषता हैं यहाँ साल में एक बार सूर्य की ऐरने माँ की प्रतिमा पर सीधे पड़ती हैं, कोलापुर देवी का पावन स्थान होने के कारण इसे दक्षिण की काशी भी कहा जाता हैं. मंदिर में स्थित शिलालेख से पता चलता हैं मंदिर 1800 वर्ष पुराना हैं.
अम्बाजी का मंदिर गुजरात
देवी के बावन शक्तिपीठो में से एक अम्बाजी का मंदिर गुजरात में स्थित हैं . इस मंदिर से जुडी विचित्र बात ये हैं की यहाँ माँ की न तो कोई मूर्ति स्थित हैं , न कोई पिंड. यहाँ माँ की पूजा श्रीयंत्र से की जाती हैं. जिसे सीधे आँखों से देखा नहीं जा सकता. यहाँ माँ का ह्रदय गिरा था. यहाँ एक पवित्र ज्योति जलती हैं.
उज्जैन स्थित हरसिद्धि माता का मंदिर
उज्जैन स्थित हरसिद्धि माता का मंदिर महाकाल ज्योतिर्लिग के समीप ही स्थित हैं.यहाँ देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती की मुर्तिया स्थित हैं.यहाँ देवी सती का बाय हाथ और ऊपरी होठ गिरा था.महाराजा विक्रमादित्य की यह आराध्य देवी हैं.महाकवि कालिदास ने माँ की प्रशंसा कुछ काव्य गीत भी लिखे.महाराजा विक्रमादित्य ने माँ को अपने शीश काट काटकर चढ़ाये थे.यहाँ श्री कृष्णा की शिक्षा भी हुयी थी. इसलिए इसलिए विष्णु तीर्थ भी कहा जाता हैं.
ज्वाला माता मंदिर काँगड़ा
ज्वाला माता का मंदिर हिमांचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित हैं . यहाँ देवी सती की जीभ गिरी थी .यहाँ मंदिर की चोटी पर स्वर्ण परत चढ़ी हुयी हैं. इसे ज्वाला माता का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता हैं.ज्वाला माता के मंदिर में सदियों से प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालायें जल रही हैं.
नौ ज्वाला में जो प्रमुख ज्वाला हैं उसे महाकाली कहा जाता हैं. प्रमुख ज्वाला के अलावा जो अन्य ज्वालायें जल रही हैं उनके नाम क्रमश अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी हैं, जो मंदिर में ज्वाला के रूप में अवस्थित हैं.
नैना देवी मंदिर बिलासपुर
नैना देवी मंदिर हिमांचल के बिलासपुर में स्थित हैं.यहाँ माता सती के नेत्र गिरे थे, यहाँ मंदिर के गुम्बद सोने से निर्मित हैं. कुछ गुम्बदों पर शिव के त्रिशूल का चिन्ह भी अंकित हैं. यहाँ मंदिर के समीप ही एक गुफा स्थित है जिसे नैना गुफा कहा जाता हैं.मंदिर के गर्भगृह में तीन मूर्तियाँ स्थित हैं, माँ काली , माँ नैना और श्री गणेश की.
कामाख्या देवी मंदिर गुवाहाटी
कामाख्या देवी का मंदिर देवी के प्रमुख शक्तिपीठो में से एक है.कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी शहर से 8 किलोमीटर दूर है. यहाँ नीलाचल पर्वत पर माँ का पावन तीर्थ स्थित हैं. यहाँ माँ की योनि गिरी थी. यहाँ माँ की योनि की पूजा की जाती हैं. प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर बंद होता हैं.ऐसी मान्यता हैं इन दिनों माँ रजस्वला होती हैं.
यह देवी का एकमात्र मंदिर या स्वरुप हैं जहा माँ मासिक धर्म के चक्र में आती है.माँ के रजस्वला के दौरान यहाँ स्थित योनि को श्वेत वस्त्र से ढक दिया जाता हैं.और माँ के रजस्वला के पर्व की समाप्ति के बाद यह वस्त्र पुजारियों द्वारा भक्तो में बाँट दिया जाता हैं.यहाँ मंदिर में तांत्रिक और साधक आस पास की गुफाओ में रहकर साधना करते हैं.
तारापीठ मंदिर कोलकाता
काली शक्ति पीठ के साथ ही एक और शक्ति पीठ यहाँ स्थित है. तारापीठ “तारा”का अर्थ हुआ नयन स्थित तारा और पीठ का अर्थ स्थल से .पुराणों में लिखी कथाओ के अनुसार यहाँ माँ के नयन तारा गिरे इसलिए यह शक्तिपीठ तारापीठ के नाम से विख्यात हुआ .कामाख्या की तरह यह शक्तिपीठ भी तांत्रिक कार्यो के लिए प्रसिद्द हैं.
श्री शैल शक्तिपीठ
आंध्र प्रदेश के कुर्नूल में स्थित श्रीशैल शक्तिपीठ माँ के शक्ति पीठो में से एक हैं , यहाँ माँ सती की ग्रीवा गिरी थी.यहाँ माँ का महालक्ष्मी स्वरुप हैं, यहाँ शिव का मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भी स्थित है.श्री शैलम को दक्षिण का कैलाश के नाम से भी जाना जाता हैं.