
साई बाबा के चमत्कार-sai baba ke chamatkar :
शिर्डी में सांईंबाबा ( sai baba ) ने सबसे पहले वाइजाबाई के घर से ही भिक्षा ली थी। वाइजाबाई की एक ही संतान थी जिसका नाम तात्या था। तात्या सांईंबाबा ( shirdi sai baba ) का परम भक्त था। वाइजाबाई ने यह निर्णय कर लिया था कि सांईंबाबा के लिए खाना बनाकर रोज द्वारिका मस्जिद खुद ही जाकर उनको खाना खिलाएगी। कभी सांईंबाबा उनको बैठे हुए मिल जाते तो कभी उनके लिए माई को घंटों इंतजार करना पड़ता। वे न जाने कहां चले जाते थे? कभी-कभार बहुत देर होने पर वह उन्हें ढूंढने के लिए निकल जाया करती थी।
एक दिन वाइजाबाई उनको ढूंढने के बाद थकी-मांदी जब मस्जिद में पहुंची तो उन्होंने देखा कि बाबा तो उनके धूने पर बैठे हैं। वाइजाबाई को देखकर बाबा बोले- मां मैं तुमको बहुत कष्ट देता हूं… जो बेटा अपनी मां को दुख दे, उससे अभागा और कोई नहीं हो सकता। मैं अब तुम्हें बिलकुल भी कष्ट नहीं दूंगा। जब तक तुम खाना लेकर नहीं आओगी, मैं कहीं नहीं जाऊंगा।
वाइजाबाई ने कहा कि तूने मुझे मां कहा है, तू ही मेरा बेटा है। वाइजाबाई प्रसन्नता से गदगद होकर बोली…। बाबा ने कहा कि तुम ठीक कहती हो मां। मुझ अनाथ, अनाश्रित और अभागे को तुमने पुत्र मानकर मुझ पर बड़ा उपकार किया है। इन रोटियों में जो तुम्हारी ममता है, क्या पता मैं इस ऋण से कभी मुक्त हो पाऊंगा या नहीं?
वाइजाबाई ने कहा कि यह कैसी बात कर रहा है बेटा? मां-बेटे का कैसा ऋण? यह तो मेरा कर्तव्य है। कर्तव्य में ऋण कहां? इस तरह की बातें आगे से बिलकुल मत करना…।
शिर्डी के साई बाबा-shirdi ke sai baba ke chamatkar :
बाबा ने कहा कि अच्छा-अच्छा नहीं कहूंगा…। फिर अपने दोनों कानों को हाथ लगाकर कहा कि तुम घर जाकर तात्या को भेज देना। वाइजाबाई ने कहा कि तात्या तो लकड़ी बेचने गया है। फिर वाईजाबाई की आपबीती सुकर बाबा की आंखें भर आईं।
तात्या अभी थोड़ी सी ही लकड़ी काट पाया था कि आसमान में अचानक बिजली कड़कने लगी। काली-काली घटाएं उमड़ने लगीं। तात्या के चेहरे पर उदासी छा गई। सोचने लगा अब क्या होगा इतनी-सी लकड़ी के तो कोई चार आने भी नहीं देगा, उस पर भी यह भीग गई तो…। घर में एक मुट्ठी भी अनाज नहीं है तो रोटी कैसे बनेगी? मां रात को सांईंबाबा को क्या खिलाएगी? यह सोचकर उसने जल्दी लकड़ी समेटी और गट्ठर बांधा और तेज कदमों से चलने लगा। तभी मूसलधार बारिश होने लगी।
उसने और तेजी से कदम बढ़ाना शुरू कर दिए ताकि लकड़ियां ज्यादा न भीगें। तभी एक आवाज सुनाई दी। …ओ लकड़ी वाले! तात्या के बढ़ते कदम रुक गए…। उसने कहा कि कौन है भाई। और तभी एक आदमी उसके सामने आ खड़ा हुआ। तात्या ने पूछा क्या बात है? अनजान आदमी ने कहा कि लकड़ी बेचोगे। तात्या ने कहा कि हां-हां क्यों नहीं, बेचने के लिए ही तो है।
कितने पैसे लोगे इन लकड़ियों के? तात्या ने कहा कि जो मर्जी हो दे देना भाई। वैसे भी लकड़ियां कम और वह भी थोड़ी भीग गई है। …तो यह लो रुपया रख लो। तात्या उस आदमी को हैरानी से देखने लगा। ऐसे देखने पर खरीददार बोला, कम है तो और ले लो।
सांईंबाबा का अद्भुत चमत्कार-sai baba ke chamatkar :
उस आदमी ने जल्दी से एक रुपया और निकालकर तात्या की ओर बढ़ाया। तात्या बोला- नहीं, नहीं भाई कम नहीं है, यह तो बहुत ज्यादा है। …तो क्या हुआ आज से तुम यहां मुझे लकड़ियां दे जाया करना, मैं यहीं मिलूंगा। कल हिसाब-किताब बराबर कर लेंगे तथा आज यह रुपया रख लो। तात्या ने कुछ देर सोचा और फिर रुपए रख लिए और जल्दी से गांव की ओर चल दिया।
घर पहुंचकर उसने मां के हाथ में रुपए रख दिए। मां की आंखें फटी की फटी रह गईं। वाइजाबाई ने आशंकित होकर पूछा कि इतने रुपए कहां से लाया? तात्या ने मां को पूरी घटना बता दी तो मां ने कहा कि तूने ठीक नहीं किया बेटा। कल याद रखकर उसे ज्यादा लकड़ियां दे आना। इंसान को अपनी ईमानदारी की कमाई ही खाना चाहिए। अगले दिन तात्या ने ज्यादा लकड़ियां काटी और गट्ठर बनाया और उसे लेकर चल दिया।
उसी स्थान पर वह आदमी मिला जिसने तात्या को देखकर कहा कि अरे भाई मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। गट्ठर देखकर आदमी ने कहा कि आज तो तुम ढेर सारी लकड़ियां ले आए? तात्या ने कहा कि कल का हिसाब-किताब भी तो पूरा करना है। कल मैंने आपको कम लकड़ियां दी थीं और ज्यादा पैसे लिए थे। तात्या ने कहा कि अब तक का हिसाब बराबर। ठीक है ना?
आदमी ने कहा कि कहां ठीक है तात्याभाई। जिस तरह तुम ईमानदारी का दामन नहीं छोड़ना चाहते उसी तरह मैंने भी बेईमानी करना नहीं सीखा। उस आदमी ने एक रुपया जेब से निकालकर तात्या के हाथ में रख दिया और कहा कि लो आज तक का हमारा हिसाब बराबर। तात्या ने रुपया लेने से बहुत इंकार किया, लेकिन उस आदमी ने जोर देकर उसे रुपया लेने पर मजबूर कर दिया।
शिरडी साई बाबा के चमत्कार :
तात्या घर की ओर चल दिया तभी रास्ते में याद आया कि अरे वह कुल्हाड़ी तो जंगल में ही भूल आया। तात्या दौड़ा-दौड़ा फिर से जंगल की ओर गया। उसने दूर-दूर तक नजर दौड़ाई लेकिन रास्ते में उसे वह आदमी और इतना भारी गट्ठर कहीं नजर नहीं आया। आखिर वह आदमी इतना भारी गट्ठर लेकर इतनी जल्दी कहां गायब हो गया? आश्चर्य में डूबा तात्या घर लौट आया।
घर पहुंचने के बाद तात्या वाइजाबाई के साथ मस्जिद गया। वाइजाबाई ने बाबा और तात्या दोनों को खाना खिलाया। खाना खाते समय तात्या ने लकड़ी खरीदने वाले के बारे में सांईंबाबा को बताया। सांईंबाबा ने कहा कि तात्या इंसान को वही मिलता है, जो उसके भाग्य में लिखा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि बिना मेहनत किए धन नहीं मिलता। फिर भी धन प्राप्ति में मनुष्य के कर्मों का बहुत बड़ा योगदान रहता है।
चोर, डाकू लूटकर बहुत सारा धन ले जाते हैं, लेकिन फिर भी वे गरीब के गरीब ही बने रहते हैं और जीवन में कई तरह के दु:खों का सामना भी करते रहते हैं। तात्या ने हैरानी से पूछा लेकिन बाबा वह आदमी और लकड़ियों का गट्ठर इतनी जल्दी कहां गायब हो गए? बाबा ने गंभीर होकर कहा कि भगवान के खेल भी बड़े अजब-गजब हैं तात्या। तुम्हें बेवजह परेशान होने की कोई जरूरत नहीं।
तात्या ने सांईंबाबा को तत्क्षण देखा और वह उनके चरणों में गिर पड़ा। अचानक सांईंबाबा उठकर खड़े हो गए और बोले- चलो, तात्या घर चलो। सांईंबाबा सीधे वाइजाबाई की कोठरी में पहुंच गए, जहां वाइजाबाई सोती थी।
shirdi sai baba :
उस कोठरी में एक पलंग पड़ा था। बाबा ने चारों ओर निगाह घुमाकर कहा कि तात्या एक फावड़ा ले आओ। तात्या फावड़ा ले आया। तात्या और वाइजाबाई की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। बाबा ने कहा कि तात्या उस पलंग के सिरहाने दाएं-बाएं खोदो।
तात्या ने बाबा के आदेश का पालन किया। तात्या ने अभी तीन-चार फावड़े मारे ही थे कि फावड़ा किसी धातु से टकरा गया। कुछ देर बाद तात्या ने मिट्टी हटाकर एक कलश निकालकर सांईंबाबा के सामने रख दिया। बाबा ने कहा कि इसे खोलो तात्या। तात्या ने कलश का ढक्कन हटाकर उसे फर्श पर उलट दिया। देखते ही देखते सोने की अशर्फियां, मूल्यवान जेवर, हीरे आदि फर्श पर बिखर गए। बाबा ने कहा कि यह तुम्हारे पूर्वजों की संपत्ति है, जो तुम्हारे भाग्य में ही लिखी थी। इसे संभालकर रखो और समझदारी से खर्च करना। वाइजाबाई और तात्या की आंखों में आंसुओं की धारा फूट पड़ी।
वाइजाबाई ने कहा कि बेटा हम यह सब रखकर क्या करेंगे? हमारे लिए तो सुख की सूखी रोटी ही अच्छी है। आप ही रखिए और मस्जिद के काम में लगा दीजिए। सांईंबाबा ने कहा कि नहीं यह सब तुम्हारे भाग्य में था। इसका इस्तेमाल तुमको ही करना है। सांईंबाबा के जोर देने पर वाइजाबाई ने कलश रख लिया।