
अब तक आप सिर्फ यही जानते आए हैं कि प्रभु राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे, लेकिन उनकी की बहन के बारे में कम लोग ही जानते हैं. दक्षिण भारत की रामायण के अनुसार प्रभु राम की बहन का नाम शांता था, जो चारों भाइयों से बड़ी थीं.
शांता राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री थीं, लेकिन पैदा होने के कुछ वर्षों बाद कुछ कारणों से राजा दशरथ ने शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को दे दिया था. भगवान राम की बड़ी बहन का पालन-पोषण राजा रोमपद और उनकी पत्नी वर्षिणी ने किया, जो महारानी कौशल्या की बहन अर्थात राम की मौसी थीं.
श्री राम का जन्म :-
प्रभु राम एक ऐतिहासिक महापुरुष थे और इसके पर्याप्त प्रमाण हैं. शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म आज से 7128 वर्ष पूर्व अर्थात 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था. अन्य विशेषज्ञों के अनुसार राम का जन्म आज से लगभग 9,000 वर्ष (7323 ईसा पूर्व) हुआ था.
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन राम का जन्म हुआ था. प्रो. तोबायस के अनुसार वाल्मीकि में उल्लेखित ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार राम का जन्म अयोध्या में 10 जनवरी को 12 बजकर 25 मिनट पर 5114 ईसा पूर्व हुआ था. उस दिन चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी थी.
आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों की यह स्थित वाल्मीकि रामायण के 1/18/89 में वर्णित है. प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर के माध्यम से किसी की भी जन्म तिथि का पता लगाना अब आसान है.
नहीं किया था प्रभु श्री राम ने माता सीता का त्याग :-
सीता 2 वर्ष तक रावण की अशोक वाटिका में बंधक बनकर रहीं लेकिन इस दौरान रावण ने सीता को छुआ तक नहीं. इसका कारण था कि रावण को स्वर्ग की अप्सरा ने यह शाप दिया था कि जब भी तुम किसी ऐसी स्त्री से प्रणय करोगे, जो तुम्हें नहीं चाहती है तो तुम तत्काल ही मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे अत: रावण किसी भी स्त्री की इच्छा के बगैर उससे प्रणय नहीं कर सकता था.
सीता को मुक्त करने के बाद समाज में यह प्रचारित है कि अग्निपरीक्षा के बाद राम ने प्रसन्न भाव से सीता को ग्रहण किया और उपस्थित समुदाय से कहा कि उन्होंने लोक निंदा के भय से सीता को ग्रहण नहीं किया था. किंतु अब अग्निपरीक्षा से गुजरने के बाद यह सिद्ध होता है कि सीता पवित्र है, तो अब किसी को इसमें संशय नहीं होना चाहिए.
लेकिन इस अग्निपरीक्षा के बाद भी जनसमुदाय में तरह-तरह की बातें बनाई जाने लगीं, तब राम ने सीता को छोड़ने का मन बनाया. यह बात उत्तरकांड में लिखी है. यह मूल रामायण में नहीं है.
तारणहार है प्रभु श्री राम का नाम :-
‘राम’ यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं महत्वपूर्ण है इसका उच्चारण. ‘राम’ कहने मात्र से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रतिक्रिया होती है, जो हमें आत्मिक शांति देती है. इस शब्द की ध्वनि पर कई शोध हो चुके हैं और इसका चमत्कारिक असर सिद्ध किया जा चुका है इसीलिए कहते भी हैं कि ‘राम से भी बढ़कर श्रीरामजी का नाम है’.श्रीराम-श्रीराम जपते हुए असंख्य साधु-संत मुक्ति को प्राप्त हो गए हैं.
प्रभु श्रीराम नाम के उच्चारण से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. जो लोग ध्वनि विज्ञान से परिचित हैं वे जानते हैं कि ‘राम’ शब्द की महिमा अपरंपार है. जब हम ‘राम’ कहते हैं तो हवा या रेत पर एक विशेष आकृति का निर्माण होता है. उसी तरह चित्त में भी विशेष लय आने लगती है.
{प्रभु राम ने फोड़ी थी इंद्र के पुत्र की आँख}
जब व्यक्ति लगातार ‘राम’ नाम जप करता रहता है तो रोम-रोम में प्रभु श्रीराम बस जाते हैं. उसके आसपास सुरक्षा का एक मंडल बनना तय समझो. प्रभु श्रीराम के नाम का असर जबरदस्त होता है. आपके सारे दुःख हरने वाला सिर्फ एकमात्र नाम है- ‘हे राम.’राम या मार : ‘राम’ का उल्टा होता है म, अ, र अर्थात ‘मार’. ‘मार’ बौद्ध धर्म का शब्द है. ‘
दुनिया भर में प्रभु राम पर लिखे सबसे ज्यादा ग्रन्थ :-
रामायण को वाल्मीकि ने भगवान राम के काल में ही लिखा था इसीलिए इस ग्रंथ को सबसे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है. यह मूल संस्कृत में लिखा गया ग्रंथ है. रामचरित मानस को गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा जिनका जन्म संवत् 1554 को हुआ था.
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अवधी भाषा में की. कितनी रामायण? एक लिस्ट तमिल भाषा में कम्बन रामायण, असम में असमी रामायण, उड़िया में विलंका रामायण, कन्नड़ में पंप रामायण, कश्मीर में कश्मीरी रामायण, बंगाली में रामायण पांचाली, मराठी में भावार्थ रामायण. कंपूचिया की रामकेर्ति या रिआमकेर रामायण, लाओस फ्रलक-फ्रलाम (रामजातक), मलेशिया की हिकायत सेरीराम, थाईलैंड की रामकियेन और नेपाल में भानुभक्त कृत रामायण आदि प्रचलित हैं. इसके अलावा भी अन्य कई देशों में वहां की भाषा में रामायण लिखी गई है.
भगवान राम के काल से जुड़े महत्वपूर्ण लोग :-
गुरु वशिष्ठ और ब्रह्माजी की अनुशंसा पर ही प्रभु श्रीराम को विष्णु का अवतार घोषित किया गया था. राम के काल में उस वक्त विश्वामित्र से वशिष्ठ की अड़ी चलती रहती थी. उनके काल में ही भगवान परशुराम भी थे. उनके काल के ही एक महान ऋषि वाल्मीकि ने उन पर रामायण लिखी.
{एक अनसुना रहस्य, विभीषण ही नहीं रावण की पत्नी मंदोदरी ने भी बताया था रावण के वध का यह राज !}
भगवान राम की वंश परंपरा राम ने सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए संपाति, जटायु, हनुमान, सुग्रीव, विभीषण, मैन्द, द्विविद, जाम्बवंत, नल, नील, तार, अंगद, धूम्र, सुषेण, केसरी, गज, पनस, विनत, रम्भ, शरभ, महाबली कंपन (गवाक्ष), दधिमुख, गवय और गन्धमादन आदि की सहायता ली.
राम के काल में पाताल लोक का राजा था अहिरावण. अहिरावण राम और लक्ष्मण का अपहरण करके ले गया था. राम के काल में राजा जनक थे, जो उनके श्वसुर थे. जनक के गुरु थे ऋषि अष्टावक्र. जनक-अष्टावक्र संवाद को ‘महागीता’ के नाम से जाना जाता है. राम परिवार : दशरथ की 3 पत्नियां थीं- कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी. राम के 3 भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न. राम कौशल्या के पुत्र थे. सुमित्रा के लक्ष्मण और शत्रुघ्न दो पुत्र थे. कैकयी के पुत्र का नाम भरत था.
वनवास कल के दौरान प्रभु श्री राम कहा कहा रुके :-
रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ, तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की. इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा, उनमें से 200 से अधिक घटनास्थलों की पहचान की गई है.
{आखिर रावण का वध करने के बाद भी श्री राम क्यों नहीं गए लंका सीता को लेने !}
जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे. वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की.
कैसे हुई थी …? भगवान श्री राम की मृत्यु
श्रीराम की मृत्यु कैसे हुई? दरअसल भगवान श्रीराम की मृत्यु एक रहस्य है जिसका उल्लेख सिर्फ पौराणिक धर्म ग्रंथों में ही मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीराम ने सरयु नदी में स्वयं की इच्छा से समाधि ली थी। इस बारे में विभिन्न धर्मग्रंथों में विस्तार से वर्णन मिलता है। श्रीराम द्वारा सरयु में समाधि लेने से पहले माता सीता धरती माता में समा गईं थी और इसके बाद ही उन्होंने पवित्र नदी सरयु में समाधि ली।