
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामाह कौरवो के पहले सेनापति थे, तथा उन्होंने युद्ध में पांडवो के सेना में खलबली मचा दी थी. महाभारत के युद्ध में एक समय पर ऐसा लगने लगा की पांडवो की सारी सेना एक ओर तथा भीष्म पितामाह एक ओर.
वासुदेव श्री कृष्ण की सहायता से ही पांडव भीष्म पितामाह पर विजय प्राप्त कर सके. परन्तु पांडवो के खिलाफ युद्ध में लड़ने के बावजूद भी भीष्म पितामाह का स्नेह पांडवो की तरफ था. अतः जब भीष्म पितामाह बाणों की शैय्या में लेटे थे तो उन्होंने अर्जुन को अपने पास बुलाया तथा जीवन से जुडी एक बहुत ही बड़ी सच्चाई से उन्हें परिचित करवाया.
आइये जानते है की आखिर भीष्म ने कौन सी ऐसी बात बताई थी अर्जुन को जिसका ज्ञान सचमुच में बहुत अनमोल एवम कीमती है.
बाणों की शैय्या पर लेटे हुए जब भीष्म पितामह अपनी अंतिम क्षण का इन्तजार कर रहे थे उस समय उन्होंने अर्जुन को अपने पास बुलाया. तथा बोले वत्स, अपने पितामाह को थोड़ा पानी तो पिलाओ.
अर्जुन ने तुरन्त अपने तरकस से एक तीर निकाला तथा उसे अपने धनुष की सहायता से जमीन पर छोड़ दिया. उसी समय जमीन से जल की एक धारा निकली जो सीधे भीष्म पितामह के मुह गिरने लगी.
प्यास बुझने के बाद भीष्म अर्जुन से बोले की जीवन भी नदी की एक धारा की तरह ही है. व्यक्ति चाहे कितना भी प्रयास करे वह फिर भी नदी की धारा को मोड़ नहीं सकता तथा धारा अपने ही रास्ते जायेगी.
इसलिए जीवन से लड़े परन्तु अगर वह आपके अनुसार फिर भी नहीं बनती तो हारे नही, सामंजस्य बिठाने का प्रयास करे. अर्जुन को इसे सही ढंग से समझाने के लिए भीष्म ने उन्हें एक कथा सुनाई.
एक बार एक बाज अपने भोजन की तलाश में निकला तभी उसे एक कबूतर दिखाई दिया.
वह कबूतर को अपना आहार बनाने के लिए उसका पीछा करने लगा. कबतूर अपनी जान बचाते हुए राजा शिबि की शरण में पहुचा तथा अपनी रक्षा की प्राथना करि. तभी वहां बाज भी कबूतर का पीछा करते हुए आ गया तथा राजा से बोला हे राजन यह मेरा भक्ष्य है कृपया इसकी रक्षा न करे.
शिबि बाज से बोले यह कबूतर मेरी शरण में आया है अतः अपने धर्म से पीछे नहीं हट सकता हु. अतः में इस कबूतर के बराबर का मॉस अपने शरीर से काटकर तुम्हे देता हु.
राजा शिबि ने एक तराजू मंगाया तथा उसके एक पलड़े में कबूतर रख कर तराजू के दूसरे पलड़े में उसके बराबर अपने शरीर से मॉस काट कर निकालने लगे. राजा ने बहुत मॉस काट उस तराजू में डाल दिया परन्तु कबूतर वाला पलड़ा जरा भी नहीं हिला. तब बाज राजा से बोला राजन आखिर आप कितना और मॉस दे पाएंगे ?
आपके बाद तो कबूतर को अपने प्राण की रक्षा के लिए स्वयं ही सोचना पड़ेगा. जब तक संसार में एक प्राणी नही मरेगा दुसरा प्राणी संसार में नहीं आएगा. बाज की इस बात को सुनकर राजा सोचने लगा की कही में कुछ गलती तो नहीं कर रहा हु.
तब शिबि की अंर्तआत्मा शिबि से बोली की संसार का यही नियम है, जीवित प्राणी यही सोच सकते हैं, पर मनुष्य जीवन के नियम से आगे जीवन का अर्थ भी खोज सकता है. मनुष्य जीवन को अपने गति से चलने देकर संवेदना भी दे सकता है.