
Badrinath Temple
उत्तराखंड को यूही देवभूमि नहीं कहा जाता हैं, यहाँ स्थित पावन धाम बद्री, केदार धाम न केवल उत्तराखंड का बल्कि पूरे भारत का आध्यात्मिक गौरव हैं. समुद्र तल से 3 ,100 मीटर (10 ,700 मीटर )(Badrinath temple height) मीटर की ऊंचाई पर स्थित श्री बद्री धाम अलकनंदा नदी के पावन तट पर स्थित हैं.
भारत के चार धामों में से एक पावन धाम बद्री (History of Badrinath) श्रद्धा और आस्था का सांस्कृतिक केंद्र हैं.पुराणों और शास्त्रों में उल्लिखित यह धाम धरा के वैकुण्ठ के नाम से प्रसिद्द हैं,जो आदि अनादि काल से नारायण की भूमि रहा हैं. तीनो लोको में पूज्यनीय सृष्टि के पालन कर्ता श्री हरि का यह निवास स्थान हैं..नारायण की तपोभूमि श्री बद्री विशाल नरनारायण पर्वत के मध्य विराजमान हैं. सतयुग में मुक्तिप्रदा, त्रेतायुग में योगसिद्धि ,द्वापरयुग में बिशाला,और कलयुग में बद्रीविशाल के नाम से लोकप्रिय श्री हरि का यह पवित्र धाम भक्तो की मनोकामना को पूर्ण और विघ्न बाधाओं को दूर करता हैं.
History of Shree Badrinath बद्री विशाल की कहानी
भगवान बद्री विशाल ने अपने तप के लिए अलकनंदा के किनारे स्थित शिवभूमि की पावन धरा आकर्षित कर गयी, उन्होंने बालक रूप धारण कर लिया और रुदन करने लगे .उनका रुदन सुनकर माँ गौरी द्रवित हो गयी, और बालक से पुछा तुम्हे क्या चाहिए , बालक रूप में श्री हरि ने अपने ध्यानयोग के लिए शिवभूमि की धरा को मांग लिया . और इस प्रकार यह पवित्र धाम बद्री विशाल के नाम से विख्यात हो गया.
एक अन्य कथा इस प्रकार से हैं
जब बद्री विशाल अपनी तपस्या में लीन थे तो, बहुत हिमपात होने लगा , श्री हरि हिम में पूरी तरह ढक गए थे , उनकी यह स्थिति देखकर माँ लक्ष्मी ने बदरी(बेर का पेड़ )का आकर ले लिया और श्री हरि की रक्षा करने लगी,वर्षो पश्च्यात जब श्री हरि का तप पूर्ण हुआ तो माता लक्ष्मी को देखकर वे प्रसन्न हुए, उन्होंने कहा की देवी तुमने भी मेरे समान तप किया हैं,इसलिए मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी, तुमने बदरी के रूप में रहकर मेरी रक्षा की हैं इसलिए यह स्थान बद्री के नाथ के रूप में जाना जायेगा.
बद्री विशाल के पवित्र धाम में विराजित श्री हरि का यह पवित्र धाम गर्भ मंडप ,सभामंडप, और दर्शनमण्डप तीन भागो में विभाजित हैं. इस पवित्र धाम में भगवान विष्णु की की काले रंग के पाषाण से बनी हुयी प्रतिमा हैं, भगवान विष्णु योग मुद्रा की अवस्था में विराजित हैं, इसके अलावा 15 अन्य मुर्तिया हैं.कुबेर , लक्ष्मी , और नारायण की मुर्तिया यहाँ सुशोभित हैं.130 डिग्री के सेल्सियस पर खौलता हुआ पानी का तप्त कुंड हैं, जहा भक्त लोग पूजा से पूर्व स्नान करके शुद्ध होते हैं.
पांच केदार की तरह पांच बद्री भी का भी उतना ही महात्मय हैं, बद्री विशाल के समान ही इन स्थलों का भी दर्शन उतना ही फलदायी हैं.
बद्री विशाल – बद्री विशाल श्री नारायण की तपोभूमि, और उनका निवास स्थान हैं. बद्री विशाल पंच बद्रियो में से एक और इसका वर्णन वेद पुराणों में हैं , इसकी स्तुति देव भी करते हैं.
योगध्यान बद्री – पांडुकेश्वर में स्थित (जोशीमठ में स्थित) योगध्यान बद्री का मंदिर स्थित हैं, मान्यता हैं यह मंदिर अति प्राचीन हैं ,यह मंदिर पाण्डुओ द्वारा निर्मित हैं इसमें श्री हरि योग ध्यान की मुद्रा में ब्रह्म कमल पर सुशोभित हैं.
वृद्ध बद्री– जोशीमठ से 8 किलोमीटर दूर स्थित श्री वृद बद्री का मंदिर साल भर खुला रहता हैं, ऐसी मान्यता हैं जब कलयुग ने अपने चरण धरा पर रखे तो विष्णु इस मंदिर में चले गए .
भविष्य बद्री– जोशीमठ से 17 किलोमीटर दूर स्थित भविष्य बद्री का मंदिर स्थित हैं . यहाँ अगस्तय मुनि ने तपस्या की थी , कहते हैं यहाँ की यात्रा काफी कठिन हैं, केवल शारीरिक रूप से समर्थ व्यक्ति ही यहाँ तक पहुंचते हैं.
आदि बद्री-पंच बद्रियो का पिता कहा जाने वाला आदि बद्री मंदिर रानीखेत कर्णप्रयाग मार्ग पर कर्णप्रयाग से 18 किलोमीटर दूर स्थित हैं. यह मंदिर 16 मंदिरो का समूह हैं.
How to reach Badrinath
बद्रीनाथ पहुंचने (how to reach Badrinath) के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश हैं . जो दिल्ली से 297 किलोमीटर दूर स्थित हैं. दूसरा रेलवे स्टेशन कोटद्धार हैं , जो दिल्ली से 300 किलोमीटर दूर स्थित हैं. इसके अलावा आप सड़क मार्ग से भी बद्रीनाथ पहुंच सकते हैं.देश के हर बड़े शहर से बद्रीनाथ के लिए बस सेवा उपलब्ध हैं.अगर आप हवाई मार्ग से बद्रीनाथ जाना चाहे तो नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून हैं,
Place to visit in Badrinath
बद्रीनाथ में दर्शनीय स्थलों का विवरण इस प्रकार से हैं (Place to visit in Badrinath)
माडा गांव -बद्रीनाथ से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह गांव भारत का अंतिम गांव हैं. यहाँ रंङपा जनजाति के लोग निवास करते हैं. यहाँ देखने लायक प्रमुख जगह हैं भीम पूल , सरस्वती मंदिर, वसुधारा ,व्यास गुफा , गणेश गुफा .
व्यास गुफा -श्री महर्षि वेदव्यास ने सरस्वती नदी के उद्गम पर स्थित व्यास गुफा में महाभारत , श्रीमद्भागवत , और 18 पुराणों की रचना की थी . इस गुफा में प्रवेश करते ही एक अलौकिक और आध्यात्मिकता का अनुभव होता हैं, वह व्यास जी की शक्ति और उनके तेज का ही महात्मय हैं.व्यास गुफा के ऊपर चट्टानें इस प्रकार से हैं मानो कई ग्रंथो को एक के ऊपर एक व्यवस्थित करके रखा गया हो इसे व्यास पोथी कहते हैं.
भीम पूल -भीम पूलसरस्वती के उद्गम के स्थान पर स्थित हैं ,मान्यता हैं की इस स्थान पर भीम ने एक चट्टान को गिराकर पूल बनाया था , जिससे सरस्वती नदी को पार कर सके , इसलिए इसे भीम पूल कहते हैं.
वसु धारा– वसु धारा बद्रीनाथ से 9 किलोमीटर की दूरी में स्थित वसुधारा के जल में स्नान करने से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं,यहाँ पर आठ वसुओं ने तप किया था. इस जगह तक पहुंचने के लिए आपको पैदल यात्रा ही करनी पड़ती हैं.
सतोपंत झील – 1 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली यह झील अद्भुत और रमणीक हैं, यह झील त्रिकोणाकार की हैं.कहते हैं इस झील के तीन कोनो पर खड़े होकर त्रिदेव ने एकादशी पर स्नान किया था इसलिए इस झील का आकर त्रिकोणाकार का हैं .इसी झील के नजदीक युधिष्ठर को स्वर्ग ले जाने के लिए आकाशीय वाहन आया था.पांडवो ने स्वर्ग पर जाने से पूर्व इसी झील पर स्नान किया था , इसलिए इस झील का धार्मिक दृष्टि से भी बड़ा महत्व हैं
लक्ष्मी वन -लक्ष्मी वन में यहाँ माँ लक्ष्मी भोज पत्र के रूप्य में निवास करती हैं , यहाँ भोजपत्र के बड़े बड़े वृक्ष हैं, माँ लक्ष्मी यहाँ प्रकृति रूप में व्यवस्थित हैं .यहाँ एक झरना हैं जिसे लक्ष्मी झरना कहते हैं.
अलकापुरी-अलकापुरी माँ अलकनंदा का उद्गम स्थान हैं.अलकनंदा गंगा की धाराओं में से एक हैं. इसे धन कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता हैं .
सतोपंथ-सतोपंथ या स्वर्गारोहिणी, मान्यता हैं, इसी स्थान से पाँचो पांडवो में सिर्फ धर्मराज युधिष्ठर ने सशरीर स्वर्ग की और प्रस्थान किया था.
इसके अलावा बद्रीनाथ में तप्त कुंड (गरम पानी का स्रोत) ब्रह्म कपाल(एक ऊंची शिला ,जिस पर श्राद्ध , तर्पण किया जाता हैं ,ऐसी मान्यता हैं की ब्रह्म कपाल पर श्राद्ध करने से पितरो को मुक्ति मिल जाती हैं), एक शिलाखंड जिसपर शेषनाग का छाप हैं जिसे शेषनेत्र कहा जाता हैं.चरणपादुका ,जहा भगवान विष्णु के श्री चरणों के निशान हैं (यही श्री हरि ने बाल रुप में अवतार लिया था.)
Best time to visit Badrinath
बद्रीनाथ धाम की(best time to visit Badrinath) यात्रा के लिए सर्वोत्तम समय ग्रीष्म ऋतू में हैं, अप्रैल से जून तक .फिर सितम्बर से अक्टूबर तक का समय श्री बद्रीनाथ धाम की यात्रा के लिए अनुकूल माना गया हैं.इस समय यहाँ का वातावरण बहुत सर्वोत्तम और तापमान भी 18 डिग्री के आस पास या इससे कम भी हो सकता हैं.