
ये तो आपको याद है होगा की जब हम छोटे थे तो हमारे छत पर बैठे काले कौवे को देख हम उसे कौआ मामा कह कर पकड़ने लगते थे. एक अन्य मान्यता यह भी हिन्दू धर्म में प्रचलित है की जब किसी के घर के आसपास या उसके छत के ऊपर काला कौआ काँव काँव करता है तो यह संकेत होता की उसके घर कोई मेहमान आने वाले है.
ये सब थी मान्यताओ की बात परन्तु क्या आपने कभी इस ओर ध्यान दिया ही की आखिर क्यों इस पक्षी का वर्णन अक्सर हमारे पुराणों एवम ग्रंथो में आता है. आखिर क्या सम्बन्ध है कौवे का हिन्दू धर्म से.
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यहां तक की जब हम अपने पितरो का श्राद इत्यादि करते है तब भी हम इस पक्षी को अहमियत देते है तथा पितरो के भोजन के साथ-साथ कौए के भोजन के लिए भी अलग से थाली निकालते है.
आइये जानते है की आखिर क्या महत्व है इस विचित्र पक्षी का हमारे धर्म में.
दरअसल पुराणों के अनुसार यह वर्णित है की कौआ यमराज का दूत है. और जब हम श्राद के अवसर पर अपने पितरो को अन्न अर्पित करते है तथा कौवे के लिए भी अलग से अन्न की थाली लगते है तो कौआ यमराज का दूत होने के कारण यमलोक में जाकर हमारे पूर्वजो को उनकी सन्तान एवम उनकी स्थिति के बारे में अवगत कराता है.
श्राद भोजन में सम्मलित किया गए भोजन की मात्रा तथा खाद्य समाग्री को देखकर कौआ पूर्वजो को हमारी सुख सुविधा तथा हमारे जीवन के हर पहलुओ से जुड़े बातो की जानकारी देता है.
इससे हमारे पूर्वजो की आत्माओ को तृप्ति मिलती है की उनकी सन्तान सुख सुविधाओ के साथ अपना जीवन निर्वाह कर रहे है.
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इसी के साथ कौवे से कई अन्य अनेक रहस्य भी जुड़े हुए है.
पुराणों (pauranik rahasya) में कौवे की विशेषता बताते हुए यह कहा गया है की इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती. कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है. इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है.
जिस दिन किसी कौए की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है. कौआ अकेले में भी भोजन कभी नहीं खाता, वह किसी साथी के साथ ही मिल-बांटकर भोजन ग्रहण करता है.
यह पक्षी बिना थके बहुत मिलो तक उड़ सकता है. कहा जाता है की कौवे को भविष्य में घटित होने वाली को घटनाओ का पहले से आभास होता है. शास्त्रो में यह भी कहा गया की कोई क्षमतावान आत्मा कौवे के भीतर प्रवेश कर विचरण कर सकती है.