
दुर्योधन को महाभारत युद्ध का खलनायक माना जाता है, क्योकि उसी के जिद्द एवं लालच के कारण कुरुक्षेत्र में महाभारत जैसा भीषण युद्ध लड़ा गया था जिसमे कई योद्धाओ एवं सेनिको का खून बहा.
ये सब तो सभी जानते है की महाभारत के युद्ध में दुर्योधन के कारण क्या क्या हुआ परन्तु दुर्योधन के जन्म से जुडी बहुत ही अजीबो गरीब बाते सायद ही आप जानते होंगे.
आज हम आपको दुर्योधन के जन्म से जुड़ा वह रहस्य बताने जा रहे है जो आपको चोका देगा. तो आइये जानते है कैसे दुर्योधन का जन्म हुआ था और क्या क्या घटित हुआ उसके जन्म के समय …..
हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी के लिए पाण्डु एवं धृष्टराष्ट्र दोनों ही चिंतित थे . दोनों ही चाहते थे कि उनका पुत्र बड़ा हो ताकि वह हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बने. गांधारी भगवान शिव की भक्त थी. उन्हें सौ पुत्रों की माता होने का आशीर्वाद प्राप्त था.
संयोग यह हुआ कि पांडु की पत्नी और कुंती और धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी दोनों गर्भवती हुई. लेकिन भाग्य ने पांडु का साथ दिया और सबसे पहले पांडु के घर युधिष्ठिर का जन्म हुआ.
इससे धृतराष्ट्र और उनकी पत्नी गांधारी बहुत दुःखी हुई. गांधारी को दुखी देखकर महर्षि व्यास ने कहा तुम्हें शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए चिंतित नहीं हो तुम सौ पुत्रों की माता बनोगी. समय बितता रहा और कुंती ने दूसरी बार गर्भ धारण किया लेकिन गांधारी के गर्भ से बच्चे का जन्म नहीं हुआ.
इससे दुखी होकर गांधारी ने अपनी दासी को पेट पर वार करने के लिए कहा .दासी ने महारानी की आज्ञा से पेट पर खूब प्रहार किया. इससे गांधारी के गर्भ से मांस का एक पिंड गिरा. अपने गर्भ से मॉस के पिंड को गिरा देख गन्धारी चिंतित हो गई तथा रोते रोते वह महृषि वेदव्यास जी के पास पहुची.
महृषि वेदव्यास ने उन्हें सन्तावना देते हुए गांधारी से काहा की तुम्हे चिंता करने की आवश्यकता नहीं है तुम्हारे इस मांस के पिंड द्वारा ही सौ पुत्रो का जन्म होगा. व्यास जी ने गांधारी को आज्ञा दी की तुम इस मांस के पिंड को सौ टुकड़ो में कटवा कर अलग अलग घडो में बंद कर दो.
गांधारी ने एक पुत्री की इच्छा भी जताई इसलिए उस मांस के पिंड को 101 टुकड़ो में काट कर घडो में बंद किया गया. नौ महीने बाद जब कुंती ने भीम को जन्म दिया तो उसी समय एक घड़ा फूटा तथा जिसमे से दुर्योधन का जन्म हुआ.
जब दुर्योधन का जन्म हुआ था तो बहुत ही अजीबो गरीब घटनाये घटने लगी जिसे देख राज पंडित और विदुर चिंतित हो उठे. दुर्योधन के पैदा होने से कुछ क्षण ही पूर्व ही आसमानो में काले बादल छा गए थे.
सभी सियार दुर्योधन के जन्म के अवसर पर राज महल के बाहर आकर नाचने लगे तथा जोर जोर से आवाजे निकालने लगे तथा अन्य सभी जानवर अपने अपने बिलो एवम गुफाओ में जाकर छिप चुके थे.
सियारो की आवाज एक अपशगुन का माहौल बना रही थी . सियारों को सैनिक भगा देते लेकिन वह फिर आकर रोने लगते. इसे देखकर राजपंडितों ने कहा कि बालक का जन्म अशुभ घड़ी में हुआ है और यह कुल का नाश करने वाला होगा. यह अगर राजमहल में रहा तो कुल का अंत हो जाएगा.
महामंत्री विदुर ने धृतराष्ट्र को सलाह दी कि इस बालक को अपने से दूर कर दें. लेकिन धृतराष्ट्र ने संतान मोह में ऐसा नहीं होने दिया और परिणाम यह हुआ कि दुर्योधन ने धीरे-धीरे महायुद्ध को आमंत्रण दे दिया और वही हुआ जो भाग्य चाहता था. दुर्योधन कुल का नाश करने वाला बन गया.