
shani dev vastra :
पुराणों अनुसार इनके सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान है। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। दुर्वासा ऋषि की तरह ये स्वभाव से धार्मिक लेकिन क्रूर हैं।
इनके अन्य नामों में यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी इत्यादि नाम हैं। शनिदेव का गोत्र कश्यप है और वे स्वभाव से क्षत्रिय हैं। वे वायव्य दिशा के स्वामी हैं। शनिदेव के दो अनुचर राहु और केतु हैं। असुर राहु और केतु ने अमृत वितरण के समय भेष बदलकर देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत चख लिया था।
जब इस बात का पता चला हो तुरंत ही उनका सिर काट दिया गया, ताकि अमृत उनके हृदय में पहुंचकर उन्हें अमर न कर दें लेकिन तब तक थोड़ी देर हो चुकी थी। कहते हैं कि आज भी इन असुरों के सिर और धढ़ जिंदा हैं।