
चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाये जाने वाली अष्टमी माता शीतला अष्टमी( sheetla ashtami) के नाम से जानी जाती हैं..शीतला अष्टमी होली के बाद आठवे दिन मनाये जाने का प्रावधान हैं, शीतला अष्टमी गुजरात ,उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मनाई जाती हैं.
शीतला अष्टमी( sheetla ashtami) को बूढ़ा बसोड़ा या लसोड़ा के नाम से भी जाना जाता हैं. मान्यता हैं इस दिन खाना पकाने के लिए चूल्हा नहीं जलाते , हैं.इसलिए एक दिन पहले ही खाना बना लिया जाता हैं.और शीतला अष्टमी के दिन बासी खाना खाने का रिवाज हैं.आइये जानते हैं शीतल माँ की पूजा की विधि और इसे मनाने का शुभ मुहूर्त .
Pooja Ka Shubh Muhurt- पूजा का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष शीतला अष्टमी 9 मार्च को हैं ,पूजा का शुभ मुहूर्त है
पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 41 से शुरू होकर शाम 6 बजकर 21 मिनट तक
अष्टमी तिथि आरम्भ 9 मार्च सुबह 3 बजकर 44 मिनट से आरम्भ
अष्टमी तिथि समाप्त हैं शनिवार सुबह 6 बजे
Puja Ka Vidhan sheetla ashtami -पूजा का विधान
शीतला माँ की पूजा का विधान बहुत सरल हैं, इस दिन बासी खाने को यानि बसोड़ा को माँ को नैवेद्य के रूप में अर्पित किया जाता हैं ,इसके लिए शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व ही खाना बना लिया जाता हैं, और उसी भोजन को माँ को अर्पित कर सभी को प्रसाद के रूप दिय जाता हैं,इस दिन चूल्हा जलाये जाने का रिवाज नहीं हैं.इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाया जाता हैं.
माँ शीतला देवी की उपासना ग्रीष्म और बसंत ऋतु में की जाती हैं . चैत्र ,वैशाख ,ज्येष्ठ ,आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला अष्टमी के रूप मनाई जाती हैं.
Sheetla Maa Ka Swaroop- शीतला माँ का स्वरुप
देवी भगवती का ही एक स्वरुप हैं माँ शीतला. गर्दभ में आरूढ़ माँ शीतला हाथ में सूप ,झाड़ू ,कलश और नीम के पत्ते धारण किये हुए हैं.उनके कलश में रोगो का नाश करने वाला ,स्वास्थ्यवर्धक जल रहता हैं.
Puja Ka Mahatwa sheetla ashtami -पूजा का महत्व
बच्चो की सुख समृद्धि और आरोग्यता के लिए एवं घर की सुख शांति के लिए माँ शीतला का व्रत किया जाता हैं.रसोई की दीवार पर घी से 5 उंगलियों को लगाया जाता हैं. इस पर रोली और चावल लगाया जाता हैं,और माता के गीत गाये जाते हैं,शीतला माता का स्त्रोत पढ़ा जाता है,माता शीतला का पूजन करने की पीछे एक मान्यता ये भी हैं, ऋतु परिवर्तन की वजह से होने वाले रोग पित्त,ज्वर और नेत्र रोग आदि सब ठीक हो जाते हैं