
story of hanuman and shani dev :
शनिदेव के घमंड के किस्से मशहूर हैं। रूद्र के बारहवें अवतार और भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमानजी का ध्यानभंग करने की सजा शनिदेव को मिली। आनंद रामायण में शनिदेव के घमंड के बारे में एक प्रसंग आता है…..
बहुत समय पहले शनिदेव ने लंबे समय तक भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव ने शनिदेव की तपस्या से फ्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने को कहा। शनिदेव बोले हे भोलेनाथ इस सृष्टि में कर्म के आधार पर दंड देने की व्यवस्था नहीं है। इसके कारण मनुष्य ही नहीं, बल्कि देवता तक भी अपनी मनमानी करते हैं। अतः मुझे ऐसी शक्ति फ्रदान करें ताकि में उछंड लोगों को दंड दे सकूं। शनिदेव के इस वर को शिवजी ने मान लिया और उन्हें दंडाधिकारी नियुक्त कर दिया।
वरदान पाकर शनिदेव घूम-घूम कर ईमानदारी से कर्म के आधार पर लोगों को दंडित करने लगे। वह अच्छे कर्म पर अच्छा और बुरे कर्मों पर बुरे कर्म पर बुरा परिणाम देते। इस तरह समय बीतता गया। शनिदेव के इस कार्य से देवता, असुर और मनुष्य कोई भी अछूता नहीं रह सका। कुछ समय बाद शनि को अपनी इस शक्ति पर अहंकार हो गया। वह स्वयं को शक्तिशाली समझने लगे।
एक समय की बात है। रावण ने जब सीता का हरण कर लिया तो वानर सेना की सहायता से जब श्रीराम ने सागर पर बांध बना लिया, तब उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्होंने हनुमानजी को सौंपी। हमेशा की तरह शनिदेव जब भ्रमण के लिए निकले, तो सागर पर बने सेतु पर उनकी नजर पड़ी जहां हनुमानजी ध्यानमग्न थे।
यह देख शनिदेव क्रोधित हो गए और हनुमानजी का ध्यान भंग करने की कोशिश करने लगे। हनुमानजी को कोई फ्रभाव नहीं पड़ा। शनिदेव का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया। आखिर में शनिदेव ने उन्हें चुनौती दे दी। तब हनुमानजी ने विनम्रता से कहा शनिदेव में अभी अपने आराध्य श्रीराम का ध्यान कर रहा हूं। कृप्या मेरी शांति भंग नहीं करें। लेकिन शनि अपनी चुनौती पर कायम रहे। तब हनुमानजी ने शनिदेव को अपनी पूंछ में लपेटकर पत्थर पर पटकना शुरू कर दिया।
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शनि लहूलुहान हो गए। तब शनिदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ कि उन्होंने हनुमानजी को को चुनौती देकर बहुत बड़ी गलती की। वह अपनी गलती के लिए मांफी मांगने लगे, तब हनुमानजी ने उन्हें छोड़ दिया। शनि के अंग-अंग भयंकर पीड़ा हो रही थी।
यह देखकर हनुमानजी को उन पर दया आ गई और उन्होंने शनिदेव को तेल देते हुए कहा कि इस तेल को लगाने से तुम्हारी पीड़ा दूर हो जाएगी, लेकिन इस तरह की गलती दोबारा मत करना। कहते हैं उसी दिन से शनिदेव को तेल अर्पित किया जाता है।
यहां शनिदेव के दर्शन मात्र से मिलती है असीम शांतिöचंद्रभागा नदी के पास जूनी इंदौर स्थित फ्राचीन शनिदेव मंदिर हजारों लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां हर शनिवार 8 से 9 हजार श्रद्धालु हाजिरी लगाते हैं। मान्यता है कि यहां हर शनिवार सच्ची आस्था से दर्शन करने पर कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके स्वयंभू और जागृत होने पर विश्वास इसी बात से किया जाता है कि वर्षों पहले दृष्टिहीन पंडित को सपने में मूर्ति दिखी थी और उनकी आंखों की रोशनी आ गई थी। इस मंदिर की ऐसी महिमा है कि अमीर-गरीब, कलाकार, न्यायाधीश, लेखक सहित हर तबके के लोग दर्शन करने आते हैं।
शनि जयंती महोत्सव के दौरान यहां ढाई से तीन लाख श्रद्धालु हाजिरी लगाते हैं। यही इस मंदिर की जीवंतता का प्रमाण है। यहां हर शनिवार दर्शन करने वाले भक्तों की परेशानियों के समाधान और सुकून के किस्से सुने जा सकते हैं।
मंदिर में पं. भीमसेन जोशी, गुलाम अली खां, अमीर खां, कुमार गंधर्व, वसुंधरा कोमकली, मालिनी राजुरकर, गोकुलोत्सव महाराज, पं. जसराज, पं. हृदयनाथ मंगेशकर, उस्ताद जाकिर हुसैन जैसे नामचीन कलाकारों ने कभी हाजिरी लगाने से इंकार नहीं किया। टीले की खुदाई से निकले भगवान शनिदेव की यह जागृत स्वयंभू मूर्ति वर्तमान में जहां स्थापित है वहां कभी टीला हुआ करता था। पूर्वी भारत से यहां आकर बसे दृष्टिहीन पं. गोपालदास तिवारी को बार-बार सपने में शनिदेव यहां से निकालने की गुजारिश करते थे।
पंडितजी ने लोगों से इसका जिक्र किया तो किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। इसी दौरान पुनः शनिदेव ने आदेश दिया कि मुझे जल्द से जल्द निकालो। दुःखी होकर पंडितजी ने कहा, महाराज कैसे निकालूं? मुझे दिखाई नहीं देता। तब प्रतिध्वनि हुई कि आंखें खोलकर देख! तुझे सब दिखाई देगा।
अचानक पंडितजी को दिखाई देने लगा। इस चमत्कार से फ्रभावित होकर कई लोग टीले की खुदाई में जुट गए। 14 फीट खुदाई के बाद वर्तमान शनि मूर्ति का शिखर नजर आया। शिलाखंड में प्रकट यह आकृति लगातार सिंदूर-श्रंगार से सुडौल बन गई है।
क्यों है बजरंग बलि सबसे अलग और निराले !
वृक्ष है पर नहीं है उसकी छाया, यही तो है शनि देव की माया ..जानिए !