
मह्रिषी भृगु के परिवार में जन्म लेने वाले महान ऋषि मार्कण्डेय (markandeya rishi ) भगवान शिव और ब्र्ह्मा को अपना आराध्य देव मानते थे. मह्रिषी मार्कण्डेय का जिक्र विभिन्न पुराणों में कई बार किया गया है. ऋषि मार्कण्डेय और संत जैमनी के बीच हुए संवाद के आधार पर ही प्रसिद्ध ग्रन्थ मार्कण्डेय पुराण के स्थापना हुई.
प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्थ भगवत पुराण भी मार्कण्डेय ऋषि (markandeya rishi ) के अनेको प्रार्थनाओं तथा उपदेशों पर आधारित है.मार्कण्डेय ऋषि का संपूर्ण जीवन अपने आप में एक शिक्षा है, इनके बारे में बहुत सी बातें हम सुनते-कहते आए हैं. यहां हम आपको उनके जीवन से जुड़ी एक ऐसी घटना के बारे में बताएंगे, जिनसे शायद आप अवगत नहीं हैं.
ऋषि मृकण्डु और उनकी पत्नी पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए भगवान शिव की तपस्या करी. भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए तथा वरदान मांगने के लिए कहा. तब ऋषि मृकण्डु और उनकी पत्नी ने भगवान शिव के समक्ष अपने पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखी.
भगवान शिव ने उन्हें वरदान देने से पूर्व एक शर्त रखी की यदि तुम्हे बुद्धिमान तथा तीव्र बुद्धि वाला बालक चाहिए तो उसकी आयु अल्प होगी तथा वह कम आयु में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा , परन्तु यदि तुम्हे दीर्घ आयु का पुत्र चाहिए तो वह मंद बुद्धि होगा
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ऋषि मृकण्डु तथा उनकी पत्नी दोनों ने अल्प आयु परन्तु बुद्धिमान पुत्र की कामना भगवान शिव से की. भगवान शिव के आशीर्वाद से उनके आश्रम में मार्कण्डेय नाम का विलक्षण एवं तीव्र बुद्धि वाले बालक ने जन्म लिया. मार्कण्डेय की आयु सिर्फ 16 वर्ष की ही थी. जैसे-जैसे मार्कण्डेय बड़ा हुआ उसका भगवान शिव के प्रति समपर्ण भी बढ़ता गया.
जब मार्कण्डेय के मृत्यु का दिन निश्चित था उस दिन भी वे भगवान शिव की पूजा में लीन थे. मार्कण्डेय का भगवान शिव की पूजा में पूरी तरह लीन होने के कारण यमदूत भी उनकी पूजा में विघ्न डालने में असफल रहे.
यमदूतों के उनके कार्य में सफल न हो पाने के कारण स्वयं यमराज को पृथ्वी लोक में आना पड़ा. उन्होंने मार्कण्डेय को अपने पास में फ़साने के लिए उसका फंदा बनाकर उस पर डाला परन्तु वह गलती से भगवान शिव पर जा लगा.
इस पर भगवान शिव को यमराज पर क्रोध आ गया तथा वे अपने रूद्र रूप में वहां पर प्रकट हुए. रूद्र रूप में भगवान शिव का यमराज के साथ बहुत भयंकर युद्ध हुआ जिसमे यमराज को पराजय का सामना करना पड़ा.
तब भगवान शिव ने यमराज से एक शर्त रखी की उनका भक्त मार्कण्डेय (markandeya rishi ) अमर रहेगा. इस घटना के बाद से ही महादेव शिव ”कालांतक” नाम से जाने जाने लगे. कालांतक शब्द का अर्थ होता है काल यानि जो मृत्यु का भी अंत कर दे.
सती पुराण में भी यह उल्लेखित है की स्वयं देवी पार्वती ने ऋषि मार्कण्डेय को वरदान दिया था की केवल वही उनके वीर चरित्र को लिख पाएंगे. इस लेख को दुर्गा सप्तशती के नाम से जाना जाता है जो की मार्कण्डेय पुराण का एक अहम भाग माना जाता है.
भगवत पुराण के अनुसार एक बार ऋषि नारायण ऋषि मार्कण्डेय (markandeya rishi ) के पास आये तथा उनसे वरदान मांगने को कहा. ऋषि नारायण को साक्षात भगवान विष्णु का अवतार (bhagwaan Vishu ke 10 Avtaar) माना जाता है. ऋषि नारयण के ऐसा कहने पर ऋषि मार्कण्डेय ने उनसे अपनी चमत्कारी शक्तियां दिखाने को कहा.
उनकी इस इच्छा पर भगवान नारायण (Bhagwaan Narayn Story in hindi ) ने एक पत्ते पर बालक का रूप धारण किया तथा कहा की ये समय और मृत्यु है. ऋषि मार्कण्डेय उस बालक के मुख के अंदर चले गए तथा वहां जाकर उन्होंने बर्ह्माण्ड का अद्भुत नजारा देखा.
भगवान नारायण के बालक रूप के मुंह के अंदर जब वे पेट की ओर पहुंचे तो उन्हें वहां नदी, पहाड़, झरने सब कुछ दिखाई दिए. कुछ देर बाद जब ऋषि मार्कण्डेय ने उनके पेट से बाहर आने की सोची तो उन्हें कोई रास्त समझ नहीं आया. तब उन्होंने भगवान विष्णु की प्राथना करनी शुरू कर दी तथा कुछ देर बाद वे बालक के पेट से बाहर निकाल आये.
इसके बाद उन्हें भगवान विष्णु का करीब 1000 साल तक सानिध्य प्राप्त हुआ. भगवान विष्णु के साथ रहकर ऋषि मार्कण्डेय (markandeya rishi ) ने जो अनुभव प्राप्त किये उसके आधार पर उन्होंने ”बालक मुकुंदष्टकम” ग्रन्थ की रचना करी.