
यमुनोत्री मंदिर(Yamunotri Temple) चार धाम की यात्रा का एक पड़ाव हैं(यमुनोत्री की कहानी – यमुनोत्री धाम की कथा).यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल के उत्तरकाशी जिले में 2 ,391 मीटर की उचाई पर हिमालय के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित हैं. यह मंदिर माँ यमुना को समर्पित हैं.यमुनोत्री माँ का वास्तविक मंदिर हनुमान चट्टी से 13 किलोमीटर दूर हैं .
माँ यमुना देश के तीन प्रमुख नदियों की एक शाखा हैं , गंगा , यमुना और सरस्वती.1839 में टिहरी नरेश सुदर्शन नरेश द्वारा यमुनोत्री का मंदिर बनवाया गया , पर बाढ़ में नष्ट होने के कारण इस मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर की महारानी ने करवाया .
यमुनोत्री धाम की कहानी(Yamunotri Dham Ki Kahani)
सूर्य की पुत्री और यम की बहिन यमी के रूप में विख्यात यमुना नदी को काली नदी (YAMUNOTRI DHAM), असित के रूप में भी जाना जाता हैं. असित ऋषि ने ही यमुना की खोज की थी. यमुना का उद्गम स्थल हिमालय के उत्तर पश्चिम में स्थित कलिंद पर्वत पर हैं,इसलिए यमुना को कालिंदी भी कहा जाता हैं,यमनोत्री तीर्थ(YAMUNOTRI ) उत्तरकाशी से 131 किलोमीटर दूर और ऋषिकेश से 231 किलोमीटर की दूरी में स्थित हैं.
यमनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के राजा प्रतापशाह ने कराया था, मंदिर के गर्भगृह में माँ यमुना की काले पाषाण की मूर्ति विराजमान हैं, यमनोत्री धाम(YAMUNOTRI DHAM) के कपाट अक्षय तृतीया के दिन ही खुलते हैं. और दीपावली के पर्व के बाद (अक्टूबर- नवंबर) बंद हो जाते हैं.
यमुनोत्री में एक तरह जहा यमुना की शीतल धारा हैं,वही वहां गर्म जल के अनेक कुंड हैं,जिसमे कपडे में बांधकर लोग चावल और आलू पकाते हैं और प्रसाद स्वरुप घर ले जाते हैं.यह काली ,परशुराम के मंदिर हैं.सूर्य कुंड और गौरी कुंड यहाँ गर्म जल के दो कुंड हैं.यमुनोत्री मंदिर (Yamunotri Temple) के भव्य प्रांगण में स्थित एक भव्य दिव्य शिला हैं. ऐसी मान्यता हैं यह दिव्य शिला ही माँ यमुना का प्रतीक हैं.
यमुनोत्री धाम यात्रा का मार्ग परिचय(Yamunotri Dham yatra)
माँ यमुनोत्री की यात्रा(Yamunotri Dham yatra) वास्तव में रोमांच और सुन्दर नैसर्गिक प्राकृतिक दृश्यों और झरनो से पूर्ण हैं , यध्यपि यमुनोत्री( Yamunotri Temple ) तक जाने का मार्ग बहुत दुर्गम और कठिन हैं,पर यहाँ की यात्रा और मार्ग में स्थित सुन्दर और प्राकृतिक दृश्य तीर्थयात्रियों को आकर्षित और सम्मोहित करते हैं. हनुमान चट्टी यमुनोत्री मार्ग का अंतिम स्थान हैं जहा तक वाहन जाते हैं, इसके बाद आगे की यात्रा पैदल मार्ग से ही तय की जाती हैं. मार्ग में नारद चट्टी , फूल चट्टी,और जानकी चट्टी स्थान आते हैं, रात्रि विश्राम के लिए तीर्थयात्री जानकी चट्टी में ही विश्राम करते हैं.यमुनोत्री मंदिर 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं. मई से लेकर अक्टूबर नवंबर तक यहाँ श्रद्धालुओ का आवागमन रहता हैं, शीतकाल में यह क्षेत्र हिम से भर जाता हैं , दीपावली पर्व के बाद यमुनोत्री के द्वार बंद कर दिए जाते हैं .
यमुनोत्री मंदिर के कपाट
यमुनोत्री मंदिर(Yamunotri temple) के कपाट अक्षय तृतीया के अवसर पर खोले जाते हैं. और दीपावली के पर्व के बाद कपाट बंद कर दिए जाते हैं.यमुनोत्री धाम(Yamunotri Dham) के दर्शनीय स्थलों में यहाँ पाए जाने वाले गर्म जल के कुंड हैं, सूर्य कुंड यहाँ उच्चतम तापमान का विश्व में सबसे गर्म जल का कुंड हैं.इसके अलावा यहाँ हनुमान कुंड, सप्तऋषि कुंड भी हैं.सूर्य कुंड के जल का तापमान 195 डिग्री फारेनहाइट हैं. सूर्यकुंड के जल से ॐ ध्वनि का स्वर गुंजायमान होता हैं.
यमुनोत्री के साथ असित ऋषि की कहानी जुडी हुयी हैं, असित ऋषि अत्यधिक वृद्ध होने के कारण सप्त ऋषि कुंड में नहीं जा पाए तो उनके अपार श्रद्धा और भक्ति देखकर माँ यमुना अभिभूत हो गयी, और यमुना उनकी कुटिया से ही प्रकट हो गयी.यही स्थान यमुनोत्री(Yamunotri) कहलाया , वर्तमान में जहा पर यमुना का उद्गम स्थान हैं ,(कालिंदी पर्वत) वहां तक की यात्रा अत्यंत कठिन और दुर्गम हैं इसलिए भक्त वहां तक मुश्किल से ही पहुंच पाते हैं.
यमुनोत्री धाम का महत्व (Significance of Yamunotri Temple)
यमुनोत्री धाम का महत्व (Significance of Yamunotri Dham) वेद पुराणों में भी लिखित हैं.कूर्म पुराण, केदारखंड ,ऋग्वेद, ब्रह्मपुराण, में यमुनोत्री का महत्व उल्लिखित यमुना प्रभाव तीर्थ के रूप में वर्णित हैं. हर वर्ष मई से लेकर अक्टूबर नवंबर तक यमुनोत्री में भक्तो का जमावड़ा रहता हैं, भक्त माँ यमुना की स्तुति करते हैं.यहाँ आने का सही समय गर्मियों में ही हैं.